West Bengal Election से पहले सियासत पूरी तरह गरमा चुकी है 🔥
बाबा बनाम बाबरी, बुर्का विवाद और हुमायूं कबीर फैक्टर ने चुनावी माहौल बदल दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी के बयान, ममता बनर्जी पर हमले और 1992 का जिक्र—सब कुछ एक ही बहस में।
👉 सवाल यही है—क्या बंगाल में धर्म की राजनीति हावी होगी या विकास जीतेगा?
पश्चिम बंगाल में सर्दियों के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले ही राज्य की राजनीति में तीखी बयानबाज़ी शुरू हो चुकी है। चुनावी माहौल बनने से पहले ही धार्मिक मुद्दे, कानून-व्यवस्था और तुष्टीकरण की राजनीति राज्य की सियासत के केंद्र में आ गई है।
हाल ही में प्रधानमंत्री Narendra Modi ने खराब मौसम के कारण नादिया जिले में आयोजित कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित किया। अपने भाषण में उन्होंने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और पश्चिम बंगाल में “महा जंगल राज” होने का आरोप लगाया।

पीएम मोदी का तृणमूल सरकार पर हमला
प्रधानमंत्री ने कहा कि पश्चिम बंगाल को मौजूदा हालात से मुक्ति दिलाने की जरूरत है। उन्होंने भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और विकास कार्यों में बाधा डालने जैसे आरोप लगाते हुए दावा किया कि राज्य का हर गांव और शहर बदलाव चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि आगामी चुनाव में जनता इसका जवाब देगी।
ममता बनर्जी के सामने बढ़ती राजनीतिक चुनौतियां
मुख्यमंत्री Mamata Banerjee के लिए यह चुनाव आसान नहीं माना जा रहा। विपक्ष का दावा है कि जिन मुस्लिम वोटों के सहारे तृणमूल कांग्रेस सत्ता में बनी रही, उन्हीं वोटों में अब असंतोष उभर रहा है। हुमायूं कबीर से जुड़े बयान और विवादों ने सत्तारूढ़ पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
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बाबरी नाम को लेकर फिर गरमाई बहस
चुनावी बहस के दौरान “बाबरी” नाम को लेकर विवाद ने फिर तूल पकड़ लिया। कुछ धार्मिक नेताओं के बयानों में 1992 जैसी घटनाओं का संदर्भ दिए जाने पर विपक्ष ने इसे भड़काऊ राजनीति बताया। वहीं, अन्य नेताओं ने कहा कि किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण कानून और अदालत के आदेशों के अनुसार ही होना चाहिए।
कई वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि किसी भी धर्मस्थल के नाम या निर्माण को लेकर हिंसा या धमकी की भाषा लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
नीतीश कुमार के बयान से राष्ट्रीय राजनीति में हलचल
पश्चिम बंगाल की राजनीति पर उस समय और असर पड़ा जब बिहार के मुख्यमंत्री Nitish Kumar के एक बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया। बुर्का और पहचान से जुड़े इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने आलोचना की, जबकि जेडीयू ने सफाई देते हुए कहा कि बयान को गलत संदर्भ में पेश किया गया।
यह मुद्दा जल्द ही बंगाल की राजनीति से जुड़ गया और विपक्षी दलों ने इसे तुष्टीकरण और महिला सुरक्षा से जोड़कर उठाया।
टीवी डिबेट में पक्ष-विपक्ष के तीखे आरोप
टीवी डिबेट के दौरान Bharatiya Janata Party, Trinamool Congress, जेडीयू और एआईएमआईएम के प्रवक्ताओं ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए। बीजेपी ने कानून-व्यवस्था, घुसपैठ और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र पर राजनीतिक एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया।
एआईएमआईएम नेताओं ने संविधान और धर्मनिरपेक्षता पर जोर देते हुए कहा कि भारत किसी एक धर्म का राष्ट्र नहीं है, बल्कि संविधान ही इसकी असली पहचान है।
विकास बनाम ध्रुवीकरण की राजनीति
बहस के अंत में कई वक्ताओं ने यह कहा कि मंदिर-मस्जिद और धार्मिक नामों की राजनीति से आगे बढ़कर विकास, महिला सुरक्षा, रोजगार और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर फोकस होना चाहिए।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, पश्चिम बंगाल में यह सियासी संघर्ष और तेज होने की संभावना है, जहां वोट बैंक, पहचान की राजनीति और शासन का रिकॉर्ड निर्णायक भूमिका निभाएगा।